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बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - अभियान

राम कथा - अभियान

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :178
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 529
आईएसबीएन :81-216-0763-9

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राम कथा पर आधारित उपन्यास, छठा सोपान


पांच


हनुमान लंका के एक चतुष्पथ पा खड़े सोच रहे थे, वे क्या करें? कहां जाएं और किससे पूछें? जब तक लंका में प्रवेश नहीं किया था, तब तक तो यही लगता था कि सागर-संतरण ही सबसे बड़ी समस्या है। सागर पार किया नहीं कि सीधे वहां जा पहुंचेंगे, जहां सीता होंगी। उनके दर्शन कर, उनकी कुशलता तथा व्यथा-सम्बंधी वार्तालाप कर तत्काल लौट जाएंगे।...तब यह कहां सोचा था कि लंका नगरी स्वयं अपने-आप में एक अथाह सागर है, जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं है। जिस ओर निकल जाओ, कोई अंत नहीं, कोई सीमा नहीं। जाने कितनी किष्किंधा नगरिया, इस एक लंका में ही समा जाएं। राजमार्गों का सीमाहीन जाल बिछा हुआ है। जिस मार्ग पर निकल जाओ, बड़े-बड़े उद्यान मिलते हैं, उसके पश्चात् ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं हैं, प्रासाद हैं, महानिलय हैं, महालय हैं। उनके ऊंचे-ऊंचे विशाल फाटक हैं, ऊंची-ऊंची प्राचीरें हैं। सब ओर पहरे का प्रबन्ध है। बाहर से भीतर का समाचार जानना असंभव है।...

हनुमान ने बहुत सारे राज्य और उनकी राजधानियां देखी थीं, किन्तु लंका जैसा नगर, पहले कभी नहीं देखा था...प्रासादों की पंक्तियों के परे, राजमार्गों से कुछ हटकर साधारण भवन थे। उन भवनों की भी जैसे अपनी पुरियां बनी हुई थीं...और सबसे अन्त में कच्चे घर थे, कुटीर, झुग्गियां, झोपड़ियां...सागर-तट की दुर्गंध, कीच तथा अन्य प्रकार की गंदगी में बसे वे लोग...लगता था वह मानव-यातना का एक पृथक् सागर था। निर्धनता, असुविधा, शोषण, वंचना, क्रूरता और अज्ञान में पले ये लोग देखने वालों की आंखों को कष्ट देते थे। मन में उनके प्रति करुणा न हो तो उनके प्रति घृणा और विरोध जागता था, कि इतने साफ-सुथरे सुन्दर नगर में ये गंदे लोग कहां से आ गए; और उन्हें भी मनुष्य मानकर उनके प्रति मन में करुणा और ममता रखकर देखें तो स्पष्ट दिखाई पड़ता था कि धन के विषम तथा अन्यायपूर्ण वितरण के षड्यंत्र में फंसे, कष्ट पाते हुए, दुखी लोग थे, जो अपनी असुविधाओं के विरुद्व लड़ते हुए भी व्यवस्था के क्रूर राक्षसों के द्वारा अभाव में जीने के अभ्यस्त बनाए जा रहे थे।...बाली के राजकाल में किष्किंधा में भी कुछ ऐसा ही घटित हो रहा था, किन्तु वहां निर्धनता के साथ-साथ वैभव का इतना विराट् प्रदर्शन नहीं था। लंका में इतनी अट्टालिकाओं की पृष्ठभूमि में सागर-तट पर धूप और कीचड़ में जीने वाले ये लोग अधिक वंचित और पीड़ित लगते थे...

क्षमता-भर, लंका में इधर-उधर घूमकर, हुनमान पुनः इस चतुष्पथ पर आकर खड़े हो गए थे। अब तक वे यही निश्चय नहीं कर पाए थे कि सीता की खोज कहां से आरम्भ करें?...सीता का अपहरण रावण ने किया था...यथासम्भव वह उनकी हत्या नहीं करेगा। हत्या ही करनी होती, तो पंचवटी से उठाकर लंका तक लाने की क्या आवश्यकता थी। हत्या तो पंचवटी में भी हो सकती थी।...फिर, रावण तो अपनी लंपटता के लिए प्रसिद्ध था...युवती सुन्दरी स्त्री को हत्या, वह कदाचित् ही करेगा...अधिक संभावना इसी बात की है कि उसने देवी वैदेही को कहीं बन्दी कर रखा होगा और संभवतः उन्हें मानसिक और शारीरिक यातनाएं दे रहा होगा...सीता का अपहरण यदि रावण ने अपने लिए किया है तो उन्हें वह मुख्यनगर से दूर, समुद्र-नट की गंदी बस्तियों में नहीं रखेगा। वह उन्हें अपने निकट, अपने वैभव के बीच बंदिनी रखेगा...

किन्तु, किससे पूछें हनुमान? चारों ओर राक्षसों का जन-पारावार है। लोग ही लोग। राजमार्ग से तनिक हटकर खड़े हो जाओ, तो ऐसा लगता है जैसे किसी सरित-तट पर खड़े हों, जिसमें जलकणों के स्थान पर मानव बह रहे हों। पता नहीं कहां से इतने लोग, एक ही नगर में एकत्रित हो गए हैं। और कहां आ-जा रहे हैं इतने लोग, क्या करते हैं इतने लोग?...किन्तु हनुमान इनमें से किसी से कुछ नहीं पूछ सकते। सीता का नाम मुख पर आते ही, उन पर संदेह किया जा सकता है। इन राक्षसों के मन में रावण के प्रति भक्ति भी होगी ही। किसी को भी संदेह हुआ, तो तत्काल राजपुरुषों को सूचना हो जाएगी...और यह तो हनुमान ने देख ही लिया था कि प्रत्येक राजमार्ग पर अनेक राजपुरुष तथा सैनिक घूमते हुए दिखाई पड़ जाते थे। वे सैनिक साधारण दण्डधर नहीं थे-वे सशस्त्र सैनिक थे। उनके हाथों में सामान्यतः शूल या पट्टिश थेः कुछ चतुष्पथों पर उन्होंने धनुर्धारियों की टुकड़ियां भी देखी थीं। बीच-बीच में अश्वारोहियों की टोलियां भी दिखाई पड़ जाती थीं। हनुमान उनसे भयभीत नहीं थे। युद्ध की बात और है; किन्तु यहां तो वे जानकी का संधान करने आये थे। राक्षसों को संदेह हो गया और बात सैनिकों तक जा पहुंची तो अकेले हनुमान इतने शस्त्रधारी सैनिकों के साथ कैसे लड़ेंगे? यदि वे बंदी हो गए या उनका वध हो गया तो जानकी का संधान कौन करेगा? वे राक्षसों की पकड़ में न आएं और लंका से निकल भागने में सफल हो गए तो सीता का संधान तो नहीं ही हो पाएगा, उल्टे कुछ अनिष्ट हो सकता है...नहीं! हनुमान को बहुत सावधान रहना होगा।

झुटपुटा अब अन्धकार में परिणत होता जा रहा था। एक ओर हनुमान की चिंता बढ़ती जा रही थी कि वे अंधकार में जानकी की खोज कहां करेंगे और दूसरी ओर उनके मन में आशा का संचार भी हो रहा था कि अंधेरे में वे कुछ और अधिक स्वतंत्रता से इस लंका में घूम-फिर सकेंगे। इस समय तो कहीं भी जाने पर उनके पहचान लिए जाने की संभावना थी।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस

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